सेवा में,
श्रीमान वन्यजीव संरक्षण अधिकारी
गुजरात।
महोदय,
जैसा कि आप जानते हैं कि जीव जंतु पारिस्थितिकी जैव विविधता बनाए रखने में कितने सहायक है। ऐसे में इनकी सुरक्षा और अस्तित्व के बारे में सोचना प्रत्येक व्यक्ति का मूल कर्तव्य है। हालांकि भारत सरकार द्वारा वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 लागू करके जीव जंतु की अनेक प्रजातियां के संरक्षण की दिशा में कार्य किया जा रहा है। परन्तु इस दिशा में अभी और अधिक जागरूक होने की आवश्यकता है।
महोदय, पिछले काफी समय से कई सारे जीव जंतुओं की संख्या में कमी आई है। साथ ही कई प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। ऐसे में यदि जल्दी कोई सख्त कदम नहीं उठाए गए, तब पारिस्थितिकी तंत्र को असंतुलित होने से कोई नहीं रोक पाएगा। यही कारण है कि भारत में जंगली जानवरों के शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और जंगलों को काटने पर भी जुर्माने का प्रबंध किया गया है। साथ ही जिन जगहों पर जीव जंतुओं के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है, उन्हें रेड जोन घोषित कर दिया गया है।
महोदय, मेरा विचार है कि वन्य जीवों के प्राणों और प्रजातियों को बचाने के लिए हमें कृत्रिम तरीकों से इनके प्रजजन को जल्द से जल्द बढ़ाना चाहिए। साथ ही इनकी तस्करी और व्यापार पर पूर्णतया रोक लगानी चाहिए, साथ ही इनके द्वारा तैयार किए गए उपभोग के पदार्थों के विकल्प अवश्य तलाशने चाहिए। वन्य जीवों का संरक्षण तभी संभव है, जब मानव सभ्यता के विकास के नाम पर इनका शोषण और अवैध तस्करी पर रोक लगाई जाएगी। ऐसे में हमें केवल अपनी आवश्यकता पूर्ति की ओर ध्यान ना देते हुए बल्कि वन्य जीवन के संरक्षण को लेकर भी जागरूक होना पड़ेगा। तभी हम पर्यावरण और परिस्तिथिकी तंत्र के संतुलन में अपना सहयोग दे सकेंगे।
आशा करता हूं कि मेरे द्वारा बताए गए उपरोक्त सुझाव आपको अवश्य ही महत्वपूर्ण लगेंगे।
इसी उम्मीद के साथ आपको धन्यवाद।
विचारक,
रमेश पंडित।