मकान नंबर 182,
रिंकर सोसायटी,
लखनऊ, उत्तर प्रदेश।
दिनांक….
प्रिय मित्र शीला,
नमस्ते।
आशा करता हूं कि तुम सकुशल होंगी। मैं भी यहां कुशलता से हूं। तुम जानती ही हो कि कोरोना संक्रमण के चलते हर व्यक्ति अपने प्रिय जनों से दूर हो चुका है। ऐसे में कोरोना महामारी के कारण संपूर्ण भारत में लॉकडॉउन के सख्त निर्देश दे दिए गए हैं। जिस कारण हम भी एक दूसरे से काफी लंबे से नहीं मिल पाए हैं। परंतु मैं तुम्हें इस पत्र के माध्यम से अपने लॉकडॉउन में प्राप्त हुए अनुभवों के विषय में बताना चाहूंगी। इस लॉकडॉउन में मैंने घर में रहकर अपने माता जी- पिता जी के साथ अच्छा समय बिताया। उनसे अत्यंत ज्ञानवर्धक बातें सुनने को मिली। उन्होंने अपने बचपन के दिनों के कई अच्छे किस्से मुझे व मेरे छोटे भाई देव को सुनाई। इसके अतिरिक्त, मैंने घर में माता जी से अनेक स्वादिष्ट व्यंजन बनाना सीखें। साथ ही कड़ाई कला से संबंधित कई प्रकार की कड़ाई करना भी सीखी है। जब मैं तुमसे मिलूंगी तो तुम्हें अपनी कड़ाई की गई वस्तुएं प्रदर्शित करूंगी।
एक दिन मैं पिता जी के साथ बाज़ार भी गई थी। घर से निकल कर मैंने देखा कि दूर दूर तक लोगों की संख्या का आंकड़ा बेहद कम था। मुश्किल से दो – चार दुकाने खुली थी। जहां से लोग लाइन में खड़े होकर समान ले रहे है। सभी लोगों ने मास्क लगा रखा था। जगह जगह पर पुलिस अफसर डंडा लेकर खड़े हुए थे। और जो व्यक्ति मास्क नहीं लगाया था उसे कानून के नियमों का पालन करने की चेतावनी दे रहे थे। सड़क पर कोई वाहन नहीं चल रहा था। कार, बस, बाइक, रिक्शा कुछ भी नही चल रहा था। ऐसे में आसमान बेहद साफ दिखाई दे रहा था। वायु में भी शुद्धता का आभास हो रहा था। मेरे घर के पास की एक नदी का पानी भी स्वच्छ हो गया था। क्योंकि लॉकडॉउन कोई भी उस नदी के किनारे ना तो गंदे कपड़े धो रहा था और ना ही कूड़ा करकच फेका जा रहा था। लॉकडॉउन के चलते विद्यालन की पढ़ाई भी ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से कराई जा रही हैं। जिससे हमें ऑनलाइन शिक्षा पद्वति से पढ़ने का भी अनुभव प्राप्त हो रहा है।
मित्र, अब मैं पूर्व की भांति शीघ्र ही सबकुछ साधारण होने का इंतजार देख रही हूं। मैंने पत्र के माध्यम से तुम्हें अपने कुछ अनुभवों के विषय में बताया। उम्मीद करती हूं कि तुम भी लॉकडॉउन के नियमों का पालन कर रही होगी। लॉकडॉउन में प्राप्त हुए अपने अनुभवों के विषय में भी मुझे पत्र लिखने का प्रयास करना।
घर में रहो, सुरक्षित रहो।
तुम्हारी प्रिय सखी,
संजना गुप्ता,
विजयवाड़ा,
आंध्र प्रदेश।