कुसंगति से बचने के लिए छोटे भाई को पत्र लिखिए।

101, राजेंद्र नगर
नई दिल्ली।

दिनांक :- 11/03/20**

प्रिय भाई विवेक,
शुभ आशीर्वाद।

बहुत दिनों से तुम्हारा कोई पत्र नहीं मिला और मैं भी कार्य में व्यस्त होने के कारण तुम्हें पत्र नहीं लिख सका। कल अचानक तुम्हारे मित्र अक्षय से भेंट हो गई। उससे विदित हुआ कि आजकल तुम उससे इसलिए रूष्ट हो कि उसने तुम्हें बुरे लड़कों के साथ न खेलने का परामर्श दिया था। अक्षय ने तो अपनी सच्ची मित्रता का परिचय दिया ही है। मैं भी तुम्हारा बड़ा भाई होने के नाते तुम्हें सम्मति दूंगा कि तुम कुसंगति को त्याग दो।

प्रियवर! तुम्हारा जन्म एक ऊंचे कुल में हुआ है। अतः तुम्हें ऐसा कोई काम न करना चाहिए, जिससे अपने कुल का अपमान हो। तुम्हें अपने कार्यों और कथनों में सदा कुल का सम्मान बढ़ाना चाहिए। तुम कुल के साथ ही देश की भी धरोहर हो। मैं चाहता हूं कि तुम अपने चरित्र का इस प्रकार निर्माण करो, जिससे भविष्य में देश के कर्णाधर बन सको। अपने आपको सत्य पथ पर अग्रसर करने के लिए बुरे और दुर्विनित सहपाठियों का साथ तुरंत छोड़ दो। अक्षय जैसे अपने मित्रो के साथ रहकर चरित्र का निर्माण करो। कुसंगति में बड़ा व्यक्ति कभी महान नहीं बन सकता। कुसंगति व्यक्ति का ऐसा शत्रु है जो उसे नष्ट करके ही छोड़ती है, वह एक भयंकर ज्वर है, जो शरीर और आत्मा का विनाश कर देता है। बुरे का फल बुरा ही होता है। कोयलों की दलाली में मुंह काला हो होता है। हानि कुसंगति सुसंगति लाहू।

भाई कुसंग का ज्वर बड़ा भयानक होता है। कुसंगति में पड़ा व्यक्ति कभी उन्नति नहीं कर सकता। कुसंग पैरों में बंधी चक्की के समान व्यक्ति को आगे बढ़ने से रोकता है। अत: इससे दूर रहना चाहिए।

मैं तुम्हें महान बनते देखना चाहता हूं। यह मैं कई बार तुम्हें समझा चुका हूं। तुम्हारा ध्येय होना चाहिए, विद्याध्यन, चरित्र निर्माण और व्यक्तित्व विकास। आशा है, तुम मेरी शिक्षा को अन्यथा न समझोगे और कुसंगति का त्याग कर अभी से ही अच्छे साथियों का साथ करोगे। यदि किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो तुरंत लिखना।

पूज्य माता जी व तुम्हारी भाभी भी तुम्हें आशीर्वाद देती है।

तुम्हारा बड़ा भाई,
प्रभात।

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