स्वामी विवेकानंद विद्यालय, छात्रावास
जयपुर।
प्रिय मित्र,
श्याम
आज ही तुम्हारा प्यार भरा पत्र मिला। पत्र में तुमने मेरी पढ़ाई औऱ मेरे छात्रावास जीवन के संबंध में जानने की उत्सुकता दिखाई है। उसी का उल्लेख मैं इस पत्र में कर रहा हूं।
मुझे यहां छात्रावास में रहते हुए लगभग दो वर्ष हो गए हैं। इन दो वर्षों में एक दिन भी ऐसा नहीं आया, जब मैं यहां के जीवन से परेशान हुआ हूं। मुझे इससे प्रसन्नता औऱ सुख ही मिलता है। यहां के जीवन का प्रत्येक क्षण अनुशासन में बंधा हुआ और विविध कार्य कलापों से पूर्ण होता है। यहां विद्यार्थी के चरित्र निर्माण और विकास पर तथा उसकी सर्वागीण प्रगति की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है।
छात्रावास का जीवन नियम पालन के बिना नहीं चल सकता। प्रात: समय पर उठना, शौचादि के बाद निवृत्त होकर व्यायाम करना। तत्पश्चात् नहाकर संध्या वंदना करना, समय पर नाश्ता लेना, ठीक समय पर तैयार होकर पाठशाला के लिए प्रस्थान करना, पाठशाला से छुट्टी होने पर सीधे छात्रावास में पहुंचकर खाना, आराम करना, स्कूल का काम पूरा करना, स्वाध्याय, खेल, संध्या वंदन सभा में उपस्थिति आदि छात्रावास जीवन की कतिपय अनिवार्यताएं हैं। महान बनने के लिए इस प्रकार के अनुशासित एवं नियमबद्ध जीवन का निर्वाह परम आवश्यक है।
यहां विभिन्न प्रान्तों के विभिन्न रुचि रखने वाले विद्यार्थियों से मिलकर सम्पूर्ण भारत को समझने में भी सहायता मिलती है। यहां रहकर समानता की भावना का उदय होता है। यहां धनी निर्धन सभी से समान व्यवहार होता है। सच पूछी तो यहां का संसार अनोखा है। मैं तो चाहता हूं कि प्रत्येक विद्यार्थी के लिए इस प्रकार का जीवन अनिवार्य बना दिया जाय ताकि छात्रों का पूर्ण विकास हो सके। वस्तुत छात्रावास का नियमबद्ध जीवन बड़े ही आनन्द का जीवन है। जब कभी तुम यहां आओ तो दो दिन मेरे यहां छात्रावास में रहो। मुझे विश्वास है कि तुम्हें भी यह जीवन अच्छा लगने लगेगा और तुम्हारी सारी निराधार शंकाओं का समाधान हो जाएगा।
अपने पूज्य माता जी और पिता जी को मेरा प्रणाम कहना।
तुम्हारा परम मित्र,
निवास वर्मा।